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सैलाना की बालम ककड़ी की कुवैत से लेकर दुबई तक रहती है,मांग

सैलाना की बालम ककड़ी की कुवैत से लेकर दुबई तक रहती है,मांग

रतलाम

13/Sept/2024

रतलाम ब्यूरो चीफ कृष्णकांत मालवीय 

रतलाम जिले के सैलाना नगर की प्रसिद्ध बालम ककड़ी की आवक इन दिनों शुरू हो गई है। इस बालम ककड़ी को लोग नाश्ते व फल की तरह सेवन कर रहे है। लौकी की तरह दिखने वाली इस बालम ककड़ी को जब बाजार से खरीद कर काटा जाता है, तो ककड़ी ऊपर से हरी और अंदर से केसरिया रंग की नजर आती है। सैलाना के वाली गांव की बालम ककड़ी इतनी प्रसिद्ध है कि महानगर दिल्ली, मुंबई सहित गल्फ के देश दुबई, कुवैत में भी इसकी मांग है।

कई किसान करते बालम ककड़ी की खेती

सैलाना क्षेत्र के आदिवासी अंचलों के कई गांवों के किसान बालम ककड़ी की खेती करते हैं। वाली गांव के पप्पू खराड़ी, मोहनलाल खराड़ी, राजू मईडा, खोरी गांव के खातु पटेल, सुरज पटेल, कांतिलाल चरपोटा, बावड़ी खेड़ा गांव के फणेश्वर मईडा, सुभाष मईडा, गोपालपुरा गांव के एलएम रतनलाल, राजु खराड़ी, शभू पटेल, देवीलाल पटेल, अमरगढ़ गांव के मुकेश डिंडोर, सद्दाम हुसैन सहित आदि किसान बालम ककड़ी की खेती करते हैं।

ये पहुंचाते रतलाम से कुवैत ककड़ी

स्थानीय रहवासी हुसैन टीनवाला, हुजैफा कापड़िया का कहना है कि कुवैत में हम बालम ककड़ी को उपहार स्वरूप भेजते हैं ओर वहां के लोग इसे बड़े ही चाव के साथ खाते हैं। नजमुद्दीन अत्तर वाला का कहना है कि बैैटा कुवैत से बालम ककड़ी को दुबई भेजता है। स्थानीय रहवासी करुण कुमार संघवी भी हर साल बालम को परिजनों को उपहार के रूप में नीमच, मंदसौर भिजवाते हैं। रहवासी इंद्रेश चंडालिया ने बताया कि बालम ककड़ी का सीजन शुरू होते मुबई से परिजनों के फोन आना शुरू हो जाते हैं। उपहार स्वरूप मुंबई में परिजनों ककड़ी पहुंचाते हैं।

ऐसे करते हैं खेती

बालम ककड़ी की खेती मिश्रित रूप से आदिवासी किसान करते है। इसमें मक्का और कपास की फसल के मध्य इसका उत्पादन होता है, ताकि इनपर इनकी बेल आसानी से चढ सके। किसान खेतों में कांटे दार फैंसिंग तारों से बालम ककड़ियों की सुरक्षा करते हैं। ताकि जंगली जानवर नुकसान न पहुंचाए।

बालम ककड़ी की बुआई बारिश शुरू होने के बाद जून- जुलाई से शुरू हो जाती है। अगस्त के अंतिम दिनों तक यह ककड़ी पुरी तरह तैयार हो जाती है। सितंबर व अक्टूबर सीजन रहता है। ककड़ी को बेचने के लिए सैलाना, रतलाम, बांसवाड़ा की ओर ले जाते हैं। ककड़ी को तैयार करने के लिए किसानों को लगभग 10 से 15 हजार रुपए तक का खर्च हो जाता है। सामान्य बालम ककड़ी 70 से 100 रुपए और बड़ी 120 से 200 रुपए तक की बिकती रही है।

 

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