श्योपुर,
22/Oct/2022,
रामस्वरूप गुर्जर ब्यूरो रिपोर्ट,
भारतीय किसान यूनियन (चढूनी) के प्रदेशाध्यक्ष राधेश्याम मीणा मूंडला ने रबी विपणन सत्र 2022-23 के लिए फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की हालिया घोषणा किसानों के साथ धोखा बताते हुए नाकाफी बताया है उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने एक बार फिर अपना किसान विरोधी रवैया दिखाया है। सरकार द्वारा घोषित कीमतें बहुत कम हैं और यह किसी भी सूरत में किसानों को लागत (C2) से 50 प्रतिशत अधिक आय नहीं देने वाली, जैसा कि स्वामीनाथन आयोग द्वारा अनुशंसित किया गया है। एमएसपी में वृद्धि, खेती की अत्यधिक बढ़ी हुई लागत और किसानों द्वारा खरीदी जाने वाली उपभोग वस्तुओं की कीमतों में मुद्रास्फीति के मुकाबले बहुत ही कम है। गेहूं के एमएसपी में केवल 5.5 प्रतिशत और चना के एमएसपी में केवल 2 प्रतिशत की वृद्धि की गई है। यह याद रखना जाना चाहिए कि 2022 के अधिकांश महीनों में, खाद्य पदार्थों की उपभोक्ता कीमतों में मुद्रास्फीति 7 प्रतिशत से अधिक रही है। पिछले एक साल, ईंधन और उर्वरकों की कीमतों में भी भारी वृद्धि हुई है। विशेष रूप से, पिछले कुछ फसल सत्रों में उर्वरकों की आपूर्ति में कमी के कारण देश के कई हिस्सों में उर्वरकों की बड़े पैमाने पर कालाबाजारी हुई है। हालांकि, किसानों की समस्याओं का कोई संज्ञान ना लेते हुए, कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) ने खेती की लागत में वृद्धि को कम करके आंका। सीएसीपी के मुताबिक, ज्यादातर रबी फसलों की खेती की लागत, गेहूं के लिए केवल 3.8 फीसदी, चना के लिए 5.4 फीसदी और रेपसीड और सरसों के लिए 6.7 फीसदी बढ़ी है। यह कृषि आदानों की कीमतों में मुद्रास्फीति के निहायत की कम आंकलन को दर्शाते हैं। यहां तक कि अगर कोई इन लागत अनुमानों को अंकित मूल्य पर लेता है, तो विभिन्न रबी फसलों की खेती से अपेक्षित आय बहुत ही कम है और लगभग पिछले वर्ष के समान स्तर पर ही निर्धारित की गई है। उदाहरण के लिए, सबसे महत्वपूर्ण रबी फसल गेहूं के लिए आय, लागत (C2) के आधिकारिक अनुमान से केवल 30 प्रतिशत अधिक है। चने के लिए रिटर्न सिर्फ 20 फीसदी है। यह देखते हुए कि लागत का आधिकारिक अनुमान बहुत कम है, तो वास्तविक रिटर्न का कम होना तो स्वाभाविक ही है। इसके अलावा कुछ चयनित खरीफ और रबी फसलों के लिए हर छह महीने में एमएसपी घोषित करने का देश के बड़े हिस्से में किसानों के लिए कोई मतलब नहीं है, क्योंकि केंद्र सरकार द्वारा कोई खरीद नहीं की जाती और किसान स्थानीय व्यापारियों को एमएसपी से काफी कम दम पर फसल बेचने को मजबूर हैं। भारतीय किसान यूनियन (चढूनी) रबी सत्र 2022-23 के लिए एमएसपी की इस किसान विरोधी घोषणा की निंदा करती है। साथ ही एक बार फिर स्वामीनाथन आयोग के फार्मूले के अनुरूप एमएसपी तय करने कि मांग दोहराती है और भारत के किसानों से उत्पादन लागत से डेढ़ गुना दर के एमएसपी की कानूनी गारंटी के लिए अपने संघर्ष को व्यापक व तेज करने का आह्वान करती है