चांपा सक्ति जांजगीर छत्तीसगढ़,
महेंद्र बघेल जिला ब्यूरो रिपोर्ट,
15/अक्टूम्बर/2022,
स्वच्छ भारत मिशन योजना के तहत ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों को खुले में शौच मुक्त को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार द्वारा ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में स्वच्छ भारत मिशन के तहत सार्वजनिक शौचालय का निर्माण कराने का पहल किया गया है जो लांखों की लागत से बनवाए गया है जिले भर के अधिकांश सार्वजनिक शौचालयों में ताले जड़े हुए हैं, जिसके चलते इन शौचालयों का इस्तेमाल ग्रामीण क्षेत्र लोग व राह गिर नहीं कर पा रहे। इसके बावजूद भी इन शौचालयों के रख-रखाव के नाम पर हर महीने करोड़ों रुपए की बजट सरकार को पंचायतों द्वारा खर्च दिखाया जा रहा है। शौचालय के संचालन का जिम्मा ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत गठित महिला समूह को सौंपे जाने की हुई थी दिशा निर्देश सक्ति जिले में मौजूद दर्जनों से अधिक ग्राम पंचायतों के सार्वजनिक शौचालयों में टाला लटका हुआ, शासन के निर्देश पर शौचालय के संचालन का जिम्मा पिछले साल जुलाई के महीने मे पंचायती राज विभाग ने ग्रामीण आजीविका मिशन एन आर एल एम को सौंपा जाना था और यह कहा गया था कि संचालन का काम समूह की महिलाएं करेगी। लेकिन इसके बावजूद भी आज इन ग्राम पंचायतों में मौजूद शौचलयों में ताला लटका हुआ हैं। ऐसे में हर महीने जो करोड़ों रुपए का खर्च दिखाया जाता है, वो आखिरकार कहाँ जा रहा है? ओडीफ़ हो चुके ग्राम पंचायतों में लाखों रुपए खर्च कर सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण कराया गया है जो आम नागरिकों के लिए कौड़ी का काम नहीं रहा है, अभी भी पंचायतों में धड़ाधड़ नए सार्वजनिक शौचालय बनाए जा रहे हैं मगर अधिकांश जगहों पर सालभर पहले बन चुके इन शौचालय कौड़ी काम नहीं आ रहे हैं। अधिकतर जिले में स्थिती ऐसा है कि ग्राम पंचायतों में सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण पूरा हो जाने के बाद भी उपयोग तक नहीं शुरु हो पाया है। जिले में मालखरौदा ब्लाक का स्थिति ऐसा की अधिकांश शौचालयों में ताला लटक रहा है। ग्राम पंचायतों द्वारा सार्वजनिक शौचालयों का संचालन करने पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा क्योंकि सरपंच-सचिव खुद ये तर्क दे रहे है कि गांव में पहले से ही सभी घरों में शौचालय बन चुके हैं गांवों में शहरों की तरह बाहरी व्यक्तियों का भी आना भी नहीं होता जिससे इस्तेमाल होता। जिसके चलते संचालन कैसे करेंगे। ऐसे में पंचायतों ने निर्माण होने के बाद उन्हें लावारिश की तरह अपने हाल में छोड़ दिया गया है। ऐसे में शासन के लाखों-करोड़ों रुपए की योजनाओं का मज़ाक बन के रख गया लेकिन फायदा लोगों को नहीं मिल पा रहा। बता दें, पिछले साल 2020-21 से स्वच्छ भारत मिशन के तहत ओडीएफ हो चुके गांवों में सार्वजनिक स्थानों पर लोगों को प्रसाधन की व्यवस्था सुलभ रुप से उपलब्ध कराने के उद्देश्य से सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण कराना शुरु किया गया है। हर साल करीब 200 पंचायतों में निर्माण कराया जा रहा है। इस साल भी करीब 200 पंचायतों में निर्माण चालू हैं मगर विडंबना है कि जिन पंचायतों में इसका निर्माण पूर्ण हो चुका है वहां इसका कोई इस्तेमाल नहीं हो रहा है। अधिकांश जगहों पर ताला लटका मिल रहा है। एक शौचालय बनाने में तीन से पांच लाख तक खर्च सार्वजनिक शौचालय के लिए राशि निर्माण पंचायत की आबादी के अनुसार जारी हो रही है। जिसमें तीन लाख रुपए से लेकर पांच लाख रुपए तक एक सार्वजनिक शौचालय के लिए राशि दी जा रही है। जिसमें तीन योजना के अभिशरण के तहत निर्माण हो रहा है। इसमें स्वच्छ भारत मिशन, मनरेगा और 14 वें दिन तीनों की राशि शामिल है। अधिकांश जगहों पर पंचायत ही निर्माण एजेंसी है। ऐसे में पंचायत निर्माण तो करा रही है पर उपयोग कराने में कोई ध्यान नहीं दे रही। अधिकांश जगह गुणवत्ताहीन कार्य तीन से पांच लाख रुपए लागत होने के बावजूद अधिकांश जगहों पर शौचालय का निर्माण मानकों को ताक पर रखकर किया गया है जिससे उपयोग शुरु होने से पहले ही जर्जर होने की स्थिति में पहुंच गए हैं। पंचायत के सरपंच-सचिवों के द्वारा निर्माण में जमकर वारा-न्यारा किया गया है और जैसे पाए हैं वैसे निर्माण कार्य करवा दिया गया है। संचालन का फंसा है पेंच पूरे मामले में सार्वजनिक शौचालय के शुरु होने के बाद संचालन का पेंच फंसा हुआ है क्योंकि संचालन के लिए किसी तरह का फंड नहीं मिलने वाला। पंचायत को ही स्वीपर से लेकर सफाई कर्मी और देखरेख का भार आएगा। स्वच्छता समिति, महिला समूह या कर्मचारी नियुक्त करना पड़ेगा जिसको हर माह वेतन देना होगा। पंचायत इसको लेकर हाथ खींच रही है। घरों-घर शौचालय फिर कौन करेगा उपयोग, सरपंचों का यही कहना है कि सभी के घरों में शौचालय है। दूसरा, कोई समूह संचालन करने तैयार नहीं है जिसके कारण फिलहाल ताला लगा हुआ है ताकि असामाजिक तत्व नुकसान न कर दें।