मालखरौदा क्षेत्रवासियो ने धूमधाम से मनाया बाबा साहेब डॉ,अंबेडकर जयंती

सक्त्ती (छ. ग.)

15/04/2023

रवि कुमार खटर्जी ब्यूरो रिपोर्ट

मालखरौदा देशभर में हर वर्ष बाबा साहेब अंबेडकर की जयंती 14 अप्रैल को मनाई जाती है। डॉ. भीमराव अंबेडकर जिन्हें बाबासाहेब अंबेडकर के नाम से भी जाना जाता है,जिनका जन्म 14 अप्रैल, 1891 को हुआ था। भारत में उनकी कड़ी मेहनत और योगदान को श्रद्धांजलि देने के लिए हर साल 14 अप्रैल को अंबेडकर जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष बाबा साहेब डा भीमराव अंबेडकर जी 132 वी जयंती मालखरौदा जनपद के अंतिम छोर ग्राम मिरौनी से प्रारंभ होकर सक्ती जिले में समाप्त हुआ है बता दे कि यह रैली मिरौनी से प्रारंभ होकर रनपोटा, घोघरी, छपोरा, कुरदा, बड़े सीपत, छोटे सीपत, मिशन चौक, मालखरौदा पहुंची जहा जनपद परिसर में स्थापित बाबा साहेब की तैल चित्र में माल्यार्पण करते हुए आगे पोता , भांटा, फगुराम, अड़भार, टेमर होते हुए सक्ती पहुंची जहा बाबा साहेब के मूर्ति में माल्यार्पण किया गया और जिले में भ्रमण किया गया। भीमराव अंबेडकर का पूरा जीवन रहा संघर्षपूर्ण वही इस जयंती के अवसर पर सामाजिक कार्यकर्ता करन अजगल्ले ने बताया की भीमराव अंबेडकर का पूरा जीवन संघर्षपूर्ण रहा है उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के बाद देश के संविधान के निर्माण में अपना अभूतपूर्व योगदान दिया। भीमराव अंबेडकर ने जीवन भर कमजोर लोगों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया। डॉ. भीमराव अंबेडकर एक राजनीतिज्ञ, अर्थशास्त्री, दार्शनिक, मानवविज्ञानी और समाज सुधारक थे, जिन्होंने जाति व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाकर दलित समुदाय के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी । डॉ. अंबेडकर शिक्षा के माध्यम से समाज के कमजोर, मजदूर और महिला वर्ग को सशक्त बनाना चाहते थे। अंबेडकर के एक प्रबल अनुयायी और एक सामाजिक कार्यकर्ता थे। उन्होंने 14 अप्रैल, 1928 को पुणे में पहली बार डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती मनाई। उन्होंने डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती को मनाने की परंपरा शुरू की और तब से भारत हर साल 14 अप्रैल को सार्वजनिक अवकाश के रूप में अंबेडकर जयंती मनाई जाती है। अंबेडकर जयंती का महत्व इसलिए भी खास है क्योंकि यह जाति आधारित कट्टरता की ओर ध्यान आकर्षित करती है, जो आजादी के 75 साल बाद भी हमारे समाज में कायम है। हम इस दिवस को मनाकर वंचितों के उत्थान में बाबासाहेब के योगदान को याद करते हैं। उन्होंने भारतीय संविधान का मसौदा तैयार किया जो जाति, धर्म, नस्ल या संस्कृति की परवाह किए बिना सभी नागरिकों को समान अधिकार देता है। अंबेडकर ने अछूतों के बुनियादी अधिकारों और शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए केंद्रीय संस्था बहिष्कृत हितकारिणी सभा का गठन किया, साथ ही दलितों को सार्वजनिक पेयजल आपूर्ति और हिंदू मंदिरों में प्रवेश करने का अधिकार प्रदान करने के लिए भी आंदोलन किया,

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